अंगूर एक स्वादिष्ट फल है। भारत में अंगूर ताजा ही खाया जाता है वैसे अंगूर के कई उपयोग हैं। इससे किशमिश, रस भी बनाई जाती है।
बोने की विधि Seeding Method
• अंगूर कंकरीली,रेतीली से चिकनी तथा उथली से लेकर गहरी मिट्टियों में अच्छा पनपता है लेकिन रेतीली, दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकास अच्छा हो अंगूर की खेती के लिए बहुत अच्छी होती है।
• जलवायु का फल के विकास तथा पके हुए अंगूर की बनावट और गुणों पर काफी असर पड़ता है।
• इसकी खेती के लिए गर्म, शुष्क, तथा दीर्घ ग्रीष्म ऋतू ठीक रहती है।
• अंगूर के पकते समय वर्षा या बादल का होना हानिकारक होता है।
• अंगूर मुख्यतः कटिंग कलम द्वारा होता है। जनवरी माह में काट छाँट से निकली टहनियों से कलमे ली जाती हैं।
• सामान्यतः 4 – 6 गांठों वाली 23 – 45 से.मी. लम्बी कलमें लेनी चाहिए ।
• इन कलमों को अच्छी प्रकार से तैयार की गयी तथा सतह से ऊँची क्यारियों में लगाना चाहिए ।
• एक वर्ष पुरानी जड़युक्त कलमों को जनवरी माह में नर्सरी से निकल कर खेत में रोपित करनी चाहिए ।
• खेत की मिटटी को अच्छे से मिला ले ।
• 90 x 90 से.मी. आकर के गड्ढे खोदने के बाद उन्हें 1/2 भाग मिट्टी, 1/2 भाग गोबर की सड़ी हुई खाद एवं 30 ग्राम क्लोरिपाईरीफास, 1 कि.ग्रा. सुपर फास्फेट व 500 ग्राम पोटेशीयम सल्फेट आदि को अच्छी तरह मिलाकर भर देना चाहिए ।
• जनवरी में इन गड्ढों में 1 साल पुरानी जड़वाली कलमों को लगा दें। बेल लगाने के तुंरत बाद पानी आवश्यक है।
• बेलों से अच्छी फसल लेने के लिए उनकी उचित समय पर काट – छाँट करते रहना चाहिए ।
• जब बेल सुसुप्त अवस्था में हो तो छंटाई की जा सकती है, परन्तु कोंपले फूटने से पहले प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए। काट – छांट जनवरी में की जाती है।
• छंटाई करते समय रोगयुक्त एवं मुरझाई हुई शाखाओं को हटा देना चाहिए और बेलों पर ब्लाईटोक्स 0.2 % का छिडकाव करना चाहिए ।
• तापमान और पर्यावरण स्थितियों को ध्यान में रखते हुए 7 – 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। फल पकने की प्रक्रिया शुरू होते ही पानी बंद कर देना चाहिए नहीं तो फल फट और सड़ सकते हैं। फलों की तुडाई के बाद एक सिंचाई कर देनी चाहिए।